चीन ने पहली बार ‘कृत्रिम सूर्य’ ऊर्जा को सफलतापूर्वक संचालित किया
चीन द्वारा हाल ही में अपने ‘कृत्रिम सूर्य’ परमाणु संलयन रिएक्टर का सफलतापूर्वक संचालन किया गया जो देश के परमाणु ऊर्जा अनुसंधान क्षमता के क्षेत्र में एक महान उपलब्धि है.
चीन ने हाल ही में पहली बार अपने "कृत्रिम सूर्य" परमाणु संलयन रिएक्टर को सफलतापूर्वक संचालित किया. इस परमाणु रिएक्टर से स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त होने की उम्मीद है. चीन के वैज्ञानिकों ने कृत्रिम सूरज परमाणु संलयन रिएक्टर को सफलतापूर्वक कर दुनिया में दूसरे सूरज के दावे को सच कर दिखाया है.
चीन ने तकनीक के मामले में नित नए मुकाम हासिल कर रहा है. चीन ने तकनीक के मामले में अमेरिका, रूस और जापान जैसे विकसित देशों को पछाड़ दिया है. चीन द्वारा हाल ही में अपने ‘कृत्रिम सूर्य’ परमाणु संलयन रिएक्टर का सफलतापूर्वक संचालन किया गया जो देश के परमाणु ऊर्जा अनुसंधान क्षमता के क्षेत्र में एक महान उपलब्धि है.
मुख्य बिंदु
• चीन का यह एचएल-2एम प्रोजेक्ट, इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर एक्सपेरिमेंटल रिएक्टर (आईटीईआर) में उसकी भागीदारी के लिए अहम तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएगा.
• आईटीईआर दुनिया का सबसे महात्वाकांक्षी ऊर्जा प्रोजेक्ट है. दुनियाभर के 35 देश इस प्रोजेक्ट में शामिल है. इनमें चीन और भारत का नाम भी है.
• चीन का यह प्रोजेक्ट आईटीईआर को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. भारत इस परियोजना में 10 प्रतिशत का साझेदार है.
• प्राकृतिक रूप से सूर्य में होने वाली परमाणु संलयन प्रक्रिया की प्रतिकृति के लिये इसमें एचएल-2एम टोकामक यंत्र का उपयोग किया गया है.
• सिचुआन प्रांत में स्थित इस रिएक्टर को सामान्यत: ‘कृत्रिम सूर्य’ के नाम से जाना जाता है जो अत्यधिक गर्मी एवं ऊर्जा उत्पन्न करता है.
कई साल से कोशिश जारी
चीन की कृत्रिम सूरज बनाने की ये कोशिश कई साल से जारी थी. कृत्रिम सूरज के प्रोजेक्ट की कामयाबी ने चीन को विज्ञान की दुनिया में उस मुकाम पर पहुंचा दिया है, जहां आज तक अमेरिका, जापान जैसे तकनीकी रूप से उन्नत देश भी नहीं पहुंच पाए.
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत
चीन की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने इस प्रोजेक्ट की शुरुआत साल 2006 में की थी. चीन ने कृत्रिम सूरज को एचएल-2एम (HL-2M) नाम दिया है, इसे चाइना नेशनल न्यूक्लियर कॉर्पोरेशन के साथ साउथवेस्टर्न इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिक्स के वैज्ञानिकों ने मिलकर बनाया है.
इस परियोजना का उद्देश्य
इसका उद्देश्य विश्व के सबसे बड़े टोकामक यंत्र का निर्माण करना है ताकि बड़े पैमाने पर कार्बन-मुक्त ऊर्जा के स्रोत के रूप में संलयन की व्यवहार्यता को सिद्ध किया जा सके. इस परियोजना का उद्देश्य ये भी था कि प्रतिकूल मौसम में भी सोलर एनर्जी को बनाया जा सके. कृत्रिम सूरज का प्रकाश असली सूरज की तरह तेज होगा. परमाणु फ्यूजन की सहायता से तैयार इस सूरज का नियंत्रण भी इसी व्यवस्था के जरिए होगा.
टोकामक क्या है?
टोकामक एक प्रायोगिक मशीन है जिसे संलयन की ऊर्जा का उपयोग करने के लिये डिज़ाइन किया गया है. एक टोकामक के अंदर परमाणु संलयन के माध्यम से उत्पादित ऊर्जा को पात्र की दीवारों में ऊष्मा के रूप में अवशोषित किया जाता है. एक पारंपरिक ऊर्जा संयंत्र की तरह एक संलयन ऊर्जा संयंत्र में इस ऊर्जा का उपयोग वाष्प उत्पादन तथा उसके बाद टरबाइन और जनरेटर के माध्यम से विद्युत उत्पादन में किया जा सकता है.
असली सूरज की तुलना में दस गुना अधिक गर्म
चीनी मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कृत्रिम सूरज की कार्यप्रणाली में एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र का उपयोग किया जाता है. इस दौरान यह 150 मिलियन यानी 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस का तापमान हासिल कर सकता है. पीपुल्स डेली के अनुसार, यह असली सूरज की तुलना में दस गुना अधिक गर्म है. असली सूरज का तापमान करीब 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस है.
इसका निर्माण कहां किया गया
चीन सिचुआन प्रांत में स्थित इस रिएक्टर को अक्सर 'कृत्रिम सूरज' कहा जाता है. यह असली सूरज की तरह प्रचंड गर्मी और बिजली पैदा कर सकता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, न्यूक्लियर फ्यूजन एनर्जी का विकास चीन की सामरिक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के साथ ही चीन के एनर्जी और इकॉनमी के सतत विकास में सहायक सिद्ध होगा।
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