Friday, January 29, 2021

    सादगी व महानता की प्रतिमूर्ति 

देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सादगी व महानता की प्रतिमूर्ति थे। उनका जन्म रामनगर में मुंशी शारदा प्रसाद के यहां 2 अक्टूबर, 1904 को व मृत्यु 11 जनवरी 1966 को हुई थी। आज उनकीं 55वीं पुण्य तिथि हैं। उनकी पहचान उनके सादा जीवन और उच्च विचार के कारण थी। उनके जीवन से जुड़े अनेक प्रसंग हम सबके लिए प्रेरणादायक हैं। उनकी महानता से संबंधित प्रसंग प्रस्तुत है। 

जब 1965 में देश भुखमरी की समस्या से गुजर रहा था, तब उस समय शास्त्री जी ने सैलरी लेना बंद कर दिया था। इसी दौरान अपने घर काम करने आने वाली बाई को भी काम पर आने से मना कर दिया था और घर का काम खुद करने लगे थे। उन्हें सादगी पसंद थी, इस कारण वे फटे कुर्ते को भी कोट के नीचे पहन लिया करते थे। 

पत्नी के लिए नहीं ली महंगी साड़ी

बात तब की है, जब लालबहादुर शास्त्रीजी इस देश के प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर रहे थे। एक दिन वे एक कपड़े की मिल देखने के लिए गए। उनके साथ मिल का मालिक, उच्च अधिकारी व अन्य विशिष्ट लोग भी थे।  मिल देखने के बाद शास्त्रीजी मिल के गोदाम में पहुंचे तो उन्होंने साड़ियां दिखलाने को कहा। मिल मालिक व अधिकारियों ने एक से एक खूबसूरत साड़ियां उनके सामने फैला दीं। 

शास्त्रीजी ने साड़ियां देखकर कहा- 'साड़ियां तो बहुत अच्छी हैं, क्या मूल्य है इनका?' 'जी, यह साड़ी 800 रुपए की है और यह वाली साड़ी 1 हजार रुपए की है।' मिल मालिक ने बताया। शास्त्रीजी बोले- 'ये बहुत अधिक दाम की हैं। मुझे कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए,'। यहां स्मरणीय है कि यह घटना 1965 की है, तब 1 हजार रुपए की कीमत बहुत अधिक थी। 

- 'जी, यह देखिए। यह साड़ी 500 रुपए की है और यह 400 रुपए की' मिल मालिक ने दूसरी साड़ियां दिखलाते हुए कहा। 'अरे भाई, यह भी बहुत कीमती हैं। मुझ जैसे गरीब के लिए कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए, जिन्हें मैं खरीद सकूं'- शास्त्रीजी बोले।

'वाह सरकार, आप तो हमारे प्रधानमंत्री हैं, गरीब कैसे ? हम तो आपको ये साड़ियां भेंट कर रहे हैं।' मिल मालिक कहने लगा। 'नहीं भाई, मैं भेंट में नहीं लूंगा'- शास्त्रीजी स्पष्ट बोले। 'क्यों साहब? हमें यह अधिकार है कि हम अपने प्रधानमंत्री को भेंट दें', मिल मालिक अधिकार जताता हुआ कहने लगा।

'हां, मैं प्रधानमंत्री हूं', शास्त्रीजी ने बड़ी शांति से जवाब दिया- 'पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि जो चीजें मैं खरीद नहीं सकता, वह भेंट में लेकर अपनी पत्नी को पहनाऊं। भाई, मैं प्रधानमंत्री हूं पर हूं तो गरीब ही। आप मुझे सस्ते दाम की साड़ियां ही दिखलाएं। मैं तो अपनी हैसियत की साड़ियां ही खरीदना चाहता हूं।'

मिल मालिक की सारी अनुनय-विनय बेकार गई। देश के प्रधानमंत्री ने कम मूल्य की साड़ियां ही दाम देकर अपने परिवार के लिए खरीदीं। ऐसे महान थे शास्त्रीजी, लालच जिन्हें छू तक नहीं सका था।

जय जवान-जय किसान🇮🇳

No comments:

Post a Comment

Latest NewsWELCOME TO SMARTPEOPLESMARTLEARNING.BLOGSPOT.COM
Thank You for site Visit. Follow our blog.