मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जीवन
मौलाना अबुल कलाम आजाद का असली नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन है. लेकिन इन्हें मौलाना आजाद नाम से ही जाना जाता है. स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई के समय मौलाना आजाद मुख्य सेनानी में से एक थे. मौलाना आजाद ये एक महान वैज्ञानिक, एक राजनेता और कवी थे. आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए इन्होने अपने पेशेवर काम को भी छोड़ दिया, और देशभक्ति के चलते देश की आजादी के लिए बाकि लोगों के साथ काम करने लगे. मौलाना आजाद, गाँधी जी के अनुयायी थे, उन्होंने गाँधी जी के साथ अहिंसा का साथ देते हुए, सविनय अवज्ञा और असहयोग आंदोलन में बढ़चढ़ के हिस्सा लिया था. बाकि मुसलमान लीडर जैसे मोहम्मद अली जिन्ना आदि से अलग, मौलाना आजाद भारत देश की स्वतंत्रता को सांप्रदायिक स्वतंत्रता से बढ़ कर मानते थे. उन्होंने धार्मिक सद्भाव के लिए काम किया है और देश विभाजन के कट्टर प्रतिद्वंद्वी भी थे. मौलाना आजाद ने लम्बे समय तक भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी, साथ ही भारत पाकिस्तान विभाजन के गवाह बने. लेकिन एक सच्चे भारतीय होने के कारण उन्होंने स्वतंत्रता के बाद भारत में रहकर इसके विकास में कार्य किया और पहले शिक्षा मंत्री बन, देश की शिक्षा पद्धति सुधारने का ज़िम्मा उठाया.
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जीवन परिचय
क्रमांक | जीवन परिचय बिंदु | मौलाना आजाद जीवन परिचय |
1. | पूरा नाम | अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन |
2. | जन्म | 11 नवम्बर 1888 |
3. | जन्म स्थान | मक्का, सऊदी अरब |
4. | पिता | मुहम्मद खैरुद्दीन |
5. | पत्नी | जुलेखा बेगम |
6. | मृत्यु | 22 फ़रवरी 1958 नई दिल्ली |
7. | राजनैतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
8. | नागरिकता | भारतीय |
9. | अवार्ड | भारत रत्न |
आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का, सऊदी अरब में हुआ था. इनके पिता मोहम्मद खैरुद्दीन एक बंगाली मौलाना थे, जो बहुत बड़े विद्वान थे. जबकि इनकी माता अरब की थी, जो शेख मोहम्मद ज़हर वात्री की बेटी थी, जो मदीना में एक मौलवी थी, जिनका नाम अरब के अलावा बाहरी देशों में भी हुआ करता था. मौलाना खैरुद्दीन अपने परिवार के साथ बंगाली राज्य में रहा करते थे, लेकिन 1857 के समय हुई विद्रोह की लड़ाई में उन्हें भारत देश छोड़ कर अरब जाना पड़ा, जहाँ मौलाना आजाद का जन्म हुआ. मौलाना आजाद जब 2 वर्ष के थे, तब 1890 में उनका परिवार वापस भारत आ गया और कलकत्ता में बस गया. 13 साल की उम्र में मौलाना आजाद की शादी जुलेखा बेगम से हो गई.
मौलाना आजाद की शिक्षा
मौलाना आजाद का परिवार रूढ़िवादी ख्यालों का था, इसका असर उनकी शिक्षा में पड़ा. मौलाना आजाद को परंपरागत इस्लामी शिक्षा दी गई. लेकिन मौलाना आजाद के परिवार के सभी वंशों को इस्लामी शिक्षा का बखूबी ज्ञान था, और ये ज्ञान मौलाना आजाद को विरासत में मिला. आजाद को सबसे पहले शिक्षा उनके घर पर ही उनके पिता द्वारा दी गई, इसके बाद उनके लिए शिक्षक नियुक्त किये गए, जो उन्हें संबंधित क्षेत्रों में शिक्षा दिया करते थे. आजाद ने सबसे पहले अरबी, फारसी भाषा सीखी, इसके बाद उन्होंने दर्शनशास्त्र, ज्यामिति, गणित और बीजगणित का ज्ञान प्राप्त किया. इसके साथ ही इन्होने बंगाली एवं उर्दू भाषा का भी अध्यन किया. आजाद को पढाई का बहुत शौक थे, वे बहुत मन लगाकर पढाई किया करते थे, वे खुद से अंग्रेजी, विश्व का इतिहास एवं राजनीती के बारे में पढ़ा करते थे.
मौलाना आजाद एक मेधावी छात्र थे, जिनमें विशेष ज्ञान की योग्यता थी, जो उन्हें समकालीन से आगे रहने में मदद करता था. मौलाना आजाद को एक विशेष शिक्षा और ट्रेनिंग दी गई, जो मौलवी बनने के लिए जरुरी थी.
मौलाना आजाद शुरुवाती जीवन
युवा उम्र में ही आजाद जी ने बहुत सी पत्रिकाओं में काम किया. वे साप्ताहिक समाचार पत्र ‘अल-मिस्वाह’ के संपादक थे, साथ ही इन्होने पवित्र कुरान के सिद्धांतों की व्याख्या अपनी दूसरी रचनाओं में की. यह वह समय था जब वे कट्टरपंथी राजनीतिक दृष्टिकोण रखते थे, जो अचानक भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ बदलकर राष्ट्रीयता के रूप में विकसित हो गई. वे ब्रिटिश राज और मुसलमानों के साम्प्रदायिक मुद्दों को तवज्जो नहीं देते थे, उनका मानना था कि देश की आजादी इन सभी मुद्दों से कही ज्यादा बढ़ कर है. मौलाना आजाद अफगानिस्तान, इराक, मिस्र, सीरिया और तुर्की की यात्रा पर गए, जहाँ उनकी सोच बदली और उनका विश्वास राष्ट्रवादी क्रांतिकारी के रूप में सामने आया.
भारत लौटने के बाद, वे प्रमुख हिन्दू क्रांतिकारियों श्री अरबिंदो और श्याम सुन्दर चक्रवर्ती से प्रभावित हुए, और आजाद जी ने उनके साथ मिलकर सक्रिय रूप से स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष में भाग लिया. इस दौरान आजाद जी ने देखा कि क्रांतिकारी गतिविधियों बंगाल और बिहार तक ही सीमित थी. दो सालों के अंदर मौलाना अबुल कलाम आजाद ने उत्तरी भारत और बंबई भर में गुप्त क्रांतिकारी केंद्रों की स्थापना में मदद की. उस समय इन क्रांतिकारी केन्दों में अधिकतर क्रांतिकारी मुस्लिम विरोधी हुआ करते थे, क्यूंकि उन लोगों का मानना था कि ब्रिटिश सरकार, भारत की आजादी के विरुध्य मुस्लिम समुदाय का इस्तेमाल कर रही है. आजाद जी ने अपने सहयोगियों की, मुस्लिम विरोधी सोच को बदलने की बहुत कोशिश की.
अन्य मुस्लिम कार्यकर्ताओं के विपरीत, मौलाना आजाद बंगाल के विभाजन का विरोध किया करते थे, उन्होंने सांप्रदायिक अलगाववाद के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की याचिका को भी खारिज कर दिया था. वे भारत में नस्लीय भेदभाव के सख्त खिलाफ थे.
मौलाना आजाद स्वतंत्रता की लड़ाई (
Maulana Azad Freedom Fighter) –
· एक मौलवी के रूप में शिक्षा लेने के बाद भी आजाद जी ने अपने इस काम को नहीं चुना और हिन्दू क्रांतिकारीयों के साथ, स्वतंत्रता की लड़ाई में हिस्सा लिया.
· 1912 में मौलाना आजाद ने उर्दू भाषा में एक साप्ताहिक समाचार पत्र ‘अल-हिलाल’ की शुरुवात की. जिसमें ब्रिटिश सरकार के विरुध्य में खुलेआम लिखा जाता था, साथ ही भारतीय राष्ट्रवाद के बारे में भी इसमें लेख छापे जाते थे. यह अखबार क्रांतिकारीयों के मन की बात सामने लाने का जरिया बन गया, इसके द्वारा चरमपंथियों विचारों का प्रचार प्रसार हो रहा था.
· इस अख़बार में हिन्दू मुस्लिम एकता पर बात कही जाती थी, युवाओं से अनुरोध किया जाता था कि वे हिन्दू मुस्लिम की लड़ाई को भुलाकर, देश की स्वतंत्रता के लिए काम करें.
· 1914 में अल-हिलाल को किसी एक्ट के चलते बेन कर दिया गया, जिससे यह अख़बार बंद हो गया. इसके बाद मौलाना आजाद ने ‘अल-बलाघ’ नाम की पत्रिका निकाली, जो अल-हिलाल की तरह ही कार्य किया करती थी.
· लगातार अख़बार में राष्ट्रीयता की बातें छपने से देश में आक्रोश पैदा होने लगा था, जिससे ब्रिटिश सरकार को खतरा समझ आने लगा और उन्होंने भारत की रक्षा के लिए विनियम अधिनियम के तहत अखबार पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद मौलाना आजाद को गिरिफ्तार कर, रांची की जेल में डाल दिया गया. जहाँ उन्हें 1 जनवरी 1920 तक रखा गया.
· जब वे जेल से बाहर आये, उस समय देश की राजनीती में आक्रोश और विद्रोह का परिदृश्य था. ये वह समय था, जब भारतीय नागरिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों के आवाज बुलंद करने लगे थे.
· मौलाना आजाद ने खिलाफत आन्दोलन शुरू किया, जिसके द्वारा मुस्लिम समुदाय को जागृत करने का प्रयास किया गया.
· आजाद जी ने अब गाँधी जी के साथ हाथ मिलाकर, उनका सहयोग ‘असहयोग आन्दोलन’ में किया. जिसमें ब्रिटिश सरकार की हर चीज जैसे सरकारी स्कूल, सरकारी दफ्तर, कपड़े एवं अन्य समान का पूर्णतः बहिष्कार किया गया.
· आल इंडिया खिलाफत कमिटी का अध्यक्ष मौलाना आजाद को चुना गया. बाकि खिलाफत लीडर के साथ मिलकर इन्होने दिल्ली में ‘जामिया मिलिया इस्लामिया संस्था’ की स्थापना की.
· गाँधी जी एवं पैगंबर मुहम्मद से प्रेरित होने के कारण, एक बड़ा बदलाव इनको अपने निजी जीवन में भी करना पड़ा. गाँधी जी के नश्के कदम में चलते हुए, इन्होने अहिंसा को पूरी तरह से अपने जीवन में उतार लिया.
· 1923 में आजाद जी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया, इतनी कम उम्र में पहली बार किसी नेता को ये पद मिला था. इसके बाद इन्होने दिल्ली में एकता सम्मेलन में किया, साथ ही खिलाफत एवं स्वराजी के बीच मतभेद कम करने की कोशिश की.
· आजाद जी भारतीय कांग्रेस के एक मुख्य राजनेता थे, जो कांग्रेस वर्किंग कमिटी के सदस्य भी थे. इस दौरान इन्होने भारत देश के अनेकों जगह में जाकर, गांधीवादी और देश की आजादी की बात कही.
· 1928 में मौलाना आजाद किसी बात पर मुस्लिम लीग लीडर के खिलाफ खड़े हो गए, और उन्होंने उस बात पर मोतीलाल नेहरु का साथ दिया. उन्होंने मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा सांप्रदायिक बात का विरोध किया और एक धर्मनिरपेक्ष देश की बात की.
· 1930 में गाँधी जी के साथ किये नमक तोड़ो आन्दोलन में, आजाद जी को बाकि नेताओं के साथ गिरफ्तार किया गया. 1934 में इन्हें जेल से रिहाई मिली.
· इसके बाद इन्होने भारत सरकार अधिनियम के तहत चुनाव के आयोजन में मदद की. केंद्रीय विधायिका में संयुक्त राष्ट्र के निर्वाचित सदस्यों की बड़ी संख्या के कारण, वे 1937 के चुनावों में नहीं थे.
· इसी दौरान इन्होने मुहम्मद अली जिन्ना और उनके सहभागियों की कड़ी निंदा की, जो कांग्रेस राज को हिन्दू राज्य कहा करते थे. उन्होंने दृढ़ता से आवाज उठाई और कांग्रेस मंत्रालयों से उनके इस्तीफे की मांग की.
· 1940 में आजाद जी को रामगढ़ सेशन से कांग्रेस का प्रेसिडेंट बनाया गया. वहां उन्होंने धार्मिक अलगाववाद की आलोचना और निंदा की, और साथ ही भारत की एकता के संरक्षण की बात कही. वे वहां 1946 तक रहे.
· भारत की आजादी के बाद मौलाना जी ने भारत के नए संविधान सभा के लिए, कांग्रेस की तरफ से चुनाव लड़ा
· भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय, इन्होने भारत देश में मुस्लिम समुदाय की रक्षा की ज़िम्मेदारी ली. विभाजन के समय वे बंगाल, बिहार, पंजाब एवं असम गए, जहाँ उन्होंने लोगों के लिए रिफ्यूजी कैंप बनवाए, उन्हें खाना एवं सुरक्षा प्रदान की.
· जवाहर लाल नेहरु की सरकार में मौलाना जी को पहले कैबिनेट मंत्रिमंडल में 1947 से 1958 तक शिक्षा मंत्री बनाया गया. मंत्री बनने के बाद आजाद जी ने 14 वर्ष से कम उम्र के सभी लोगों के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी. साथ ही वयस्क निरक्षरता, माध्यमिक शिक्षा और गरीब एवं महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया, जिससे देश की उन्नति जल्द से जल्द हो सके.
वे वैज्ञानिक शिक्षा पर विश्वास करते थे. इन्होने कई यूनिवर्सिटी एवं इंस्टिट्यूट का निर्माण कराया, जहाँ उच्च दर की शिक्षा मौजूद कराई. मौलाना आजाद के तत्वाधान में ही देश का पहला IIT, IISC एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग का निर्माण हुआ था.
मौलाना आजाद उपलब्धियां (Maulana Azad Achievements) –
· 1989 में मौलाना आजाद के जन्म दिवस पर, भारत सरकार द्वारा शिक्षा को देश में बढ़ावा देने के लिए ‘मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन’ बनाया गया.
· मौलाना आजाद के जन्म दिवस पर 11 नवम्बर को हर साल ‘नेशनल एजुकेशन डे’ मनाया जाता है.
· भारत के अनेकों शिक्षा संसथान, स्कूल, कॉलेज के नाम इनके पर रखे गए है.
मौलाना आजाद को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया है.
मौलाना आजाद मृत्यु (Maulana Azad Death) –
22 फ़रवरी 1958 को स्ट्रोक के चलते, मौलाना आजाद जी की अचानक दिल्ली में मृत्यु हो गई.
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाने की शुरुवात मौलाना आजाद जी ने ही की थी. उनको भारत देश में शिक्षा का संस्थापक कहें, तो ये गलत नहीं होगा. आज मौलाना जी के अथक प्रयास के चलते ही भारत शिक्षा में इतना आगे बढ़ गया गया. मौलाना जी जानते थे, देश की उन्नति एवं विकास के लिए शिक्षा का मजबूत होना बहुत जरुरी है. यही कारण है कि अपने अंतिम दिनों में भी वे इसी ओर प्रयासरत रहे.
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियाँ
§ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद का जन्म एक अफग़ानी पिता और अरबी माता के घर हुआ था।
§ वर्ष 1857 में, मोहम्मद खैरुद्दीन अपने परिवार के साथ कलकत्ता छोड़ कर मक्का चला गया था। वहाँ मोहम्मद खैरुद्दीन की मुलाकात अपनी होने वाली पत्नी से हुई और उसके कुछ समय बाद मोहम्मद खैरूद्दीन वर्ष 1890 में पुनः भारत लौट आया।
§ जब मौलाना आज़ाद महज 11 वर्ष के थे तब उनकी माँ का देहांत हो गया था।
§ आज़ाद की आरंभिक शिक्षा इस्लामी तौर तरीकों से उनके घर पर व मस्ज़िद में उनके पिता के द्वारा हुई।
§ 13 वर्ष की आयु में मौलाना आज़ाद का विवाह ज़ुलैखा बेग़म से हुआ था।
§ 16 वर्ष की आयु में आज़ाद ने विभिन्न भाषाओं जैसे कि उर्दू, फ़ारसी, हिन्दी, अरबी तथा अंग्रेजी़, इत्यादि का ज्ञान प्राप्त करते हुए, अपनी सम्पूर्ण शिक्षा हासिल की।
§ उन्होंने ‘लिसान-उल-सिद’ नामक पत्रिका प्रारम्भ की, उन पर उर्दू के दो महान आलोचक ‘मौलाना शिबली नाओमनी’ और ‘अल्ताफ हुसैन हाली’ का बहुत प्रभाव पड़ा।
§ आज़ाद ने उस समय के अधिकांश मुसलमानों के लिए एक कट्टरपंथी विचारधारा को विकसित किया और एक पूर्ण भारतीय राष्ट्रवादी बन गए, जिसके चलते उन्होंने नस्लीय भेदभाव के लिए अंग्रेजों की आलोचना की।
§ वर्ष 1905 में, उन्होने बंगाल के विभाजन का विरोध किया और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की अलगाववादी विचारधारा को खारिज़ किया।
§ वर्ष 1912 में, उन्होंने एक उर्दू पत्रिका “अल हिलाल” का संचालन किया, जिसका उद्देश्य मुसलमान युवकों को क्रांतिकारी आन्दोलन के प्रति उत्साहित करना और हिन्दू-मुस्लिम एकता पर बल देना था।
§ फ़ारसी पृष्ठभूमि होने के कारण उन्हें कभी-कभी विचारों को समझने में थोड़ी मुश्किल होती थी, जिसके चलते उन्होंने नए विचारों के लिए नए मुहावरों का प्रयोग किया, जिससे पुराने रूढिवादी मुसलमानों ने उनके इस प्रयास की कड़ी आलोचना की, क्योंकि मौलाना मध्यकालीन दर्शन, अठारहवीं सदी के बुध्दिवाद और आधुनिक दृष्टिकोण को मिश्रित करना चाहते थे।
§ युवावस्था से ही आज़ाद धर्म और दर्शन पर उर्दू में कविताएं लिखते थे, अपनी कविताओं में वह अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध और भारतीय राष्ट्रीय एकता के लिए लिखते थे, उसी समय आंदोलन के नेता के रूप में वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संपर्क में आए और वह गांधी जी के अहिंसक आंदोलन ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ के समर्थक हो गए।
§ वर्ष 1919 में, उन्होंने रॉलेट एक्ट के विरोध में असहयोग आंदोलन को संगठित करने में सक्रिय भूमिका निभाई और गांधी जी के स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग और स्वराज जैसे आदर्शों का प्रबल समर्थन किया।
§ वर्ष 1923 में, वह 35 वर्ष की आयु में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने।
§ वर्ष 1935 में, मौलाना आज़ाद ने मुस्लिम लीग, जिन्ना और कांग्रेस के साथ बातचीत की, जिससे राजनीतिक आधार को सुदृढ़ किया जा सके।
§ वर्ष 1938 में, आज़ाद ने गांधी जी के समर्थकों और तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सुभाषचंद्र बोस के बीच पैदा हुए मतभेदों में सुलह का कार्य किया।
§ वर्ष 1924 में, जब महात्मा गांधी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए आमरण अनशन शुरू किया था, उस समय मौलाना आज़ाद घर-घर घूम कर सभी सम्प्रदायों के लोगों को समझाते थे कि राष्ट्रीय एकता को बनाए रखें और गांधी जी से प्रार्थना करते थे कि वह अपना अनशन तोड़ दें।
§ स्वतंत्र भारत के पहले शिक्षा मंत्री होने के नाते उन्होंने ग्यारह वर्षो तक राष्ट्र की नीति का मार्गदर्शन किया।
§ उन्होंने शिक्षा और संस्कृति को विकसित करने के लिए उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की।
§ मौलाना आज़ाद ने ही ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ अर्थात् ‘आई.आई.टी. और ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग’ की स्थापना की।
§ 11 नवम्बर 1988 को, भारत सरकार द्वारा मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के जन्मदिवस पर एक डाक टिकट जारी की गई।
§ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के जन्मदिवस 11 नवम्बर को ‘राष्ट्रीय शिक्षा दिवस’ के रूप घोषित किया गया।
§ हैदराबाद में उनके नाम पर ‘मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू युनिवर्सिटी’ को स्थापित कर राष्ट्र की ओर से एक स्वतन्त्रता सेनानी, क्रान्तिकारी, पत्रकार, समाज सुधारक, शिक्षा विशेषज्ञ और अभूतपूर्व शिक्षा मंत्री को श्रृद्धांजली दी गई।
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